दोस्तों हमारे आसपास बहुत सारे प्राणी और पक्षियों हे लेकिन ऐसे बहुत सारे जीव हे जिसके बारे में हम लोग नहीं जानते. खासकर ऐसे पक्षी, जिसकी प्रजाति कम हो रही हे और बाद में सरकार एसी प्रजाति को बचाने के लिए जागृत होते है. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती हे. आज में आपको एक ऐसे ही पक्षी के बारे में बताने जा रहा हु जिसकी प्रजाति लगभग विलुप्त ही हो गई हे. हम बात कर रहे है खरमोर पक्षी (Lesser Florican in Hindi) की.
खरमोर: भारतीय घासभूमि का बेजोड़ पक्षी
खरमोर पक्षी या लेसर फ्लोरिकन भारत की बस्टर्ड पक्षी प्रजाति का सबसे छोटा पक्षी है. भारत में बस्टर्ड प्रजाति के तीनों सदस्य है जिसमे, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, लेसर फ्लोरिकन और बंगाल फ्लोरिकन का समावेश होता है जो की घास के मैदानों के संरक्षण के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं. यह पक्षी घास के मैदानों के कीड़ों को खाकर इन मैदानों को बचाते हैं और इस ही वजह से ये आसपास के किसानों के दोस्त भी कहे जाते हैं.
कहां से आते हैं और कहां जाते हैं खरमोर
अंग्रेजी में Lesser Florican और हिंदी में खरमोरके नाम से जाने जाने वाला पक्षी भारत और पाकिस्तान में पाया जाता हे. यह घोराड पक्षीओ की प्रजाति का है. इसके शरीर का रंग हल्का सा काला होता है. वही उसकी पंख सफ़ेद, चोंच और पाँव पिले रंग के होते है. इसके मस्तिष्क पर मोर की तरह ही कलगी होती हे.
खरमोर पक्षी की ऊंचाई 50 सेंटीमीटर के आसपास होती हे. यह पक्षी भारत में ज्यादातर मध्यप्रदेश के रतलाम और सेलाम में अक्टूबर और नवम्बर में पाए जाते है. वैसे तो खरमोर दक्षिण के आसपास रहते हे लेकिन जुलाई ख़त्म होने के बाद यह रतलाम और सेलाम में प्र्जोप्ती के लिए आते है. क्योंकि यहाँ का वातावरण खरमोर को बहुत ही अच्छा लगता हे और नवम्बर ख़त्म होने के बाद यह पक्षी अपने बच्चों सहित वापिस अपने घर चले जाते हे.
प्रजनन के समय में नर खरमोर अद्भुत हवाई नृत्य करते हैं, जिसमें वे मादा को आकर्षित करने के लिए कई मीटर ऊंची छलांग लगाते हैं. प्रजनन के समय में नर का शरीर काला होता है और कंधे पर सफेद धब्बा होता है. खरमोर मुख्य रूप से कीटों जैसे टिड्डे, छोटे कशेरुकी, और बीज खाते हैं.
अभ्यारण क्यों और कब बना
यह पक्षी की प्रजाति लुप्त हो रही हे यह बात सबसे पहले सन 1980 में पता चली और इसके बाद मध्यप्रदेश की सरकार ने सन 1983 में रतलामऔर सेलाम में इस पक्षी को बचाने के लिए अभ्यारण बनाया लेकिन इसके बावजूद भी इस पक्षी की संख्या में कोई बढोती नहीं हुई बल्कि घटती रही.
तब सरकार ने उसका कारन जाना की अभ्यारण के आसपास रहने वाले गाँव वासी इस पक्षी का शिकार करते थे और साथ ही इसके अंडे भी नष्ट कर देते थे. क्योंकि अभ्यारण बनने के लिए सरकार ने वहा के खेडूतो की जमिन छिन ली थी और अभ्यारण में सामिल करली थी. इसी वजह से वो लोग इसका क़त्ल कर रहे थे ताकि अभ्यारण बन्ध हो जाए और सरकार उनकी जमिन वापस कर दे. बल्कि सारी बात जानकर भी सरकार ने उन लोगो की ज़मीन वापस नहीं की और इसकी वजह से गाँव के लोगो ने खरमोर का क़त्ल चालू ही रखा.
खरमोर का अंत
इस तरह से बार बार क़त्ल होने की वजह से सन 2004 तक सिर्फ 9 खरमोर पक्षी ही बचे थे और इसकी वजह से वन विभाग ने एसी बात रखी की जो भी लोग खरमोर पक्षी के अंडे को बचाकर वन विभाग को वापस करगे उनको 5000 का इनाम दिया जायेगा.
भारत में खरमोर के संरक्षण के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं. गुजरात और राजस्थान में विशेष रूप से इसके लिए संरक्षित क्षेत्र बनाए गए हैं. अभयारण्य संरक्षण संगठनों और सरकार द्वारा जागरूकता अभियानों के माध्यम से इसके आवास को बचाने और इस पक्षी की संख्या को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए जा रहे हैं.
एक शताब्दी पहले तक खरमोर पुरे भारत में पाए जाते थे. घास के मैदान पे ही रहने वाले इस पक्षी की संख्या अब फिर से कम हो रही है. खरमोर एक आकर्षक पक्षी प्रजाति है जो निवास स्थान के नुकसान और गिरावट, शिकार और कीटनाशक के उपयोग के कारण महत्वपूर्ण खतरों का सामना कर रही है.
दोस्तों, आपको Lesser Florican in Hindi- Bengal Florican Facts – खरमोर पक्षी के बारे में रोचक जानकारी अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ इसे जरुर शेर करे.