History of Saragarhi battle in Hindi | सारागढ़ी की लड़ाई का इतिहास
दोस्तों, हमारा भारत देश कितना महान हे यह बात हमको हमारे इतिहास से ही पता चलती हे की केसे केसे महावीर इस धरती पर पैदा हुए और उन्हों ने एसे एसे कारनामे किये हे जो की दुनिया भर में भारत की प्रतिष्टा को बढाता हे. दुनिया भर में एसी बहोत सारी लड़ाई लडी जा चुकी हे लेकिन आज के इस आर्टिकल में हम आपको एक एसे युध्ध के बारे में बताने जा रहे हे जिसने भारत और दुनिया भर के इतिहास में अपना अलग स्थान बना लिया हे.
History of Saragarhi battle पोस्ट की खास बाते:-
- ऐसी लड़ाई जो भारतीय इतिहास में कभी नहीं भुलाई जा सकती
- कब हुआ था सारागढ़ी का युद्ध
- 36 वीं सिख रेजिमेंट क्या हे
- कहा पे हे सारागढ़ी और इसका निर्माण केसे हुआ
- सारागढ़ी की लड़ाई का इतिहास
- 21 बहादुर सीखो के नाम
- गुरूद्वारे का निर्माण
- सारागढ़ी के युद्ध पर आधारित फिल्म केसरी
- रोचक तथ्य
बैटल ऑफ सारागढ़ी: ऐसी लड़ाई जो भारतीय इतिहास में कभी नहीं भुलाई जा सकती
इस युद्ध का नाम हे सारागढ़ी की लड़ाई जिस पर 21 मार्च को अक्षय कुमार की केसरीफिल्म आने वाली हे. इस फिल्म में इस लड़ाई के बारे में ही बताया गया हे. इस युद्ध में केवल 21 सीखो ने 10000 अफ़ग़ान सैनिको को टक्कर दी थी.
कब हुआ था सारागढ़ी का युद्ध
यह युद्ध सन 1897 में हुआ था जिसमे 21 बहादुर भारतीय शिख सैनिकों ने 10,000 अफगानिओ से जबर्दस्त मुकाबला किया था. इस युद्ध में 36वीं सिख रेजिमेंट के 21 सिख सेना के जवानों ने भाग लिया था और जिस समय ये युद्ध हुआ था उस वकत भारत पर ब्रिटिश का राज था. हलाकि ये युद्ध भारत की और से लड़ा गया था लेकिन भारत पर राज कर रहे ब्रिटिशों की ओर से ये युद्ध उन बहादुर 21 सीखो द्वारा लड़ा गया था.
36 वीं सिख रेजिमेंट क्या हे
सिख रेजिमेंट भारतीय सेना का एक सैन्य दल हे जो वकत आने पर दुस्मानो के सामने बहादुरी से लड़ सके. इस बटालियन में सिर्फ सिख लोग ही होते थे. और आज वो 36वि सिख बटालियन भारत में ११वी सिख रेजिमेंट के रूप में जनि जाती हे.
कहा पे हे सारागढ़ी और इसका निर्माण केसे हुआ
सारागढ़ी का स्थान आजादी से पहले भारत का ही एक भाग था लेकिन देश के बंटवारे से यह स्थान पाकिस्तान के हिस्से में चला गया था और इस वक्त ये स्थान आधुनिक पाकिस्तान में एक छोटे से गांव में है.
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सारागढ़ी को 20 अप्रैल 1894 को ब्रिटिश भारतीय सेना के 36वीं सिख रेजिमेंट के कर्नल जे कुक की कमान में बनाया गया था. सारागढ़ी पोस्ट को एक पहाड़ी की चोटी पर बनाया गया था जिसमें एक छोटा सा Block House, किले की दीवार और एक सिग्नलिंग टॉवर का निर्माण किया गया था.
सारागढ़ी की लड़ाई का इतिहास
यह बात है सन 1897 की जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था. उस वक्त अफगान पश्तून सेना इस किले को जीतना चाहती थी क्योंकि यह कला राजनीतिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण था. उस समय भारतीय सेना में 36 वी सिख रेजीमेंट की ड्यूटी सारागढ़ी के किला में हुआ करती थी.
उस वकत अफ़रीदी और औरकज़ई कबालियों ने गुलिस्तान और लोखार्ट के किलों पर कब्जा करने के मकसद से ये युद्ध किया था. ये दोनों किले भारत और अफगान की सीमा के पास स्थित थे और इन दोनों किलों का निर्माण महराजा रणजीत सिंह द्वारा बनाया गया था.
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12 सितंबर को अफगानी पश्तूनों ने लोखार्ट किले पर अचानक हमला शुरू कर दिया था और उस वकत इतना समय ही नहीं था की कोई दूसरी सेना आ सके. इस वकत केवल 21 सिख सैनिक ही वहा पर तेनात थे और सामने 10000 अफ्घानी थे. अफगानों को लगा कि इस छोटी सी पोस्ट को जीतना काफी आसान होगा क्यूंकि हमरे पास उनसे कई गुना ज्यादा सैनिक हे.
सामने थी इतनी बड़ी विशाल सेना और इधर सिर्फ 21 सिख ही थे जो चाहते तो भाग सकते थे लेकिन सिख यानि की शेर और शेर कभी भागते नहीं हे. उनके सिग्नल इंचार्ज गुरमुख सिंह ने उन्हें कहा की वे किसी सुरक्षित जगह चले जाये. लेकिन उन्हों ने भागने की बजाय उनका सामना करने का संकल्प किया.
सब से पहले नायक लाल सिंह और भगवान सिंह ने किले से बाहर निकल कर अचानक ही दुश्मनो पर ताबड़तोड़ गोलियां चला दी और आगे बढ़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए. फिर उस के बाद सैनिक कमांडर ईश्वर सिंह ने बाकी बचे सिख सैनिको के साथ मिल कर “ जो बोले सोह निहाल“ के नारे लगा कर दुश्मन पर गोलियां चलना शुरू कर दिया.
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बड़ा ही भयंकर युद्ध हुआ, सिर्फ 19 सिख ही बचे थे फिर भी उन्होंने सुबह से शुरू हुए इस युद्ध को रात तक वीरता से सामना किया. आखिर कार अफ़ग़ान सैनिको ने इस युद्ध को जित लिया लेकिन 21 वीर जाबांज सिखोने उनके 600 सैनिको को मोत के घाट उतार दिया था. इस युद्ध में 21 सिख भी वीरगति को प्राप्त हो गए थे. और इनकी इस बहादुरी की बदोलत ब्रिटीश सरकार ने उन्हें Indian Order of Merit का अवार्ड प्रदान किया था. आज भी भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट हर साल 12 सितम्बर को ‘सारागढ़ी दिवस‘ मनाती है.
21 बहादुर सीखो के नाम
इतने बहादुरी से लड़ने वाले और हमारे देश के लिए वीरगति पाने वाले एसे बहादुर सैनिको के नाम तो हमें पता ही होना चाहिए. तो यह बहादुर 21 सीखो के नाम इस प्रकार से हे,
गुरमुख सिह, जीवन सिह, बूटा सिंह, जीवां सिंह, नंद सिंह, राम सिंह, भगवन सिंह, जीवन सिंह, नारायण सिंह, भोला सिंह, दया सिंह, हिरा सिंह, साहिब सिंह, राम सिंह, सुन्दर सिंह, उत्तर सिंह, गुरमुख सिंह, भगवन सिंह.
गुरूद्वारे का निर्माण
इस युद्ध को उनेस्को ने दुनिया के सबसे बहादुरी भरे 8 युद्ध में सामिल किया हे. सारागढ़ी के युद्ध में भाग लेने वाले सभी बहादुर सीखो के स्मारक में तिन गुरद्वारो के निर्माण किया गया हे. जिसके स्थान हे सारागढ़ी, फिरोजपुर और तीसरा अमृतसर. अमृतसर में स्थित यह गुरुद्वारा 14 फरवरी 1902 में गुरुद्वारा स्वर्ण मंदिर के नजदीक ही बनाया गया हे जिनमे सभी 21 सीखो के नाम लिखे हुए हे
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सारागढ़ी के युद्ध पर आधारित फिल्म केसरी
जेसे की हम सभी जानते हे की आजकल ऐतिहासिक फिल्मे ज्यादा बने जाती हे और लोगो को पसंद भी आती हे. तो ठीक इस तरह अक्षय कुमार की आगामी फिल केसरी भी सारागढ़ी के युद्ध के ऊपर ही आधारित हे और इस फिल्म 21 मार्च 2019 को सिनेमा घर में रिलीज हो ने वाली हे.
· सारागढ़ी की इस लड़ाई को UNESCO ने दुनिया की 8 सब से बड़ी लड़ाइयों में शामिल किया है.
· सारागढ़ी का ये युद्ध 12 सितंबर 1897 को ब्रिटिश इंडियन आर्मी और अफगानों के बीच लड़ा गया था.
· सारागढ़ी किल्ला समाना रेंज पर स्थित कोहाट जिले का सीमावर्ती इलाके का एक छोटा सा गाँव है जो इस समय पाकिस्तान का हिस्सा हे.
· सारागढ़ी किले को 20 अप्रैल 1894 को ब्रिटिश भारतीय सेना के 36वीं सिख रेजिमेंट के कर्नल जे कुक के नेतृत्व में बनाया गया था.
· इस युद्ध में 21 सीखो के सामने 10000 अफ़ग़ान सैनिको का पसीना छुट गया था.
· इस युद्ध में बटालियन के भगवान सिंह सबसे पहले शहीद हुए जो की अकेले ही अफ़ग़ान सेना पर टूट पड़े थे.
· इन 21 सिख जवानो ने उनके 600 सैनिको को मोट के घाट उतार दिया था.
· सारागढ़ी के युद्ध में बहादुरी से लड़ने वाले इन 21 बहादुर सिख जवानों के सम्मान में तीन गुरुद्वारे बनाए गए.
· सारागढ़ी युद्ध में शहीद हुए 21 सिख जवानों को ब्रिटिश इंडिया द्वारा ‘Indian Order of Merit’ से सम्मानित किया गया था जो की भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र के बराबर है.
· इस युद्ध में गुरमुख सिंह आखरी सिख बचे थे और उनको आग से जला दिया गया था फिर भी उन्होंने अकेले ही उनके कई सारे सैनिको को मोत के घाट उतार दिया था.
· इस युद्ध में 10000 अफ़ग़ान सैनिको के आमने सिर्फ 21 सिख थे फिर भी सुबह से सूरी हुई इस लड़ाई को रात तक खिंच कर ले गए.
· दुसरे दिन सुबह ब्रिटिश सरकार ने वापिस से इस किल्ले को जित लिया था.